बिहार में बौद्ध धर्म के विकास का केंद्र रहा है बिहार प्राचीन बिहार का इतिहास | Buddhism In Bihar
आज हम आप सभी विद्यार्थियों के लिए बिहार में बौद्ध धर्म लेकर आए हैं इस पोस्ट के माध्यम से हम आपको बिहार में बौद्ध धर्म (Buddhism In Bihar) विस्तार से बताएंगे I कॉलेजऑफ कॉमर्स, आर्ट्स एंड साइंस में दो दिनों से चल रहा बुद्धिज्म की प्रासंगिकता पर इंटरनेशनल कॉन्फ्रेंस सोमवार को समाप्त हो गया। कॉन्फ्रेंस के दूसरे दिन केपी जायसवाल शोध संस्थान के निदेशक डॉ. विजय कुमार चौधरी ने कहा कि बिहार बौद्ध धर्म के विकास का केंद्र रहा है। दुनिया में जब बौद्ध धर्म गौण था, तब बिहार में यह उत्कर्ष पर था। उन्होंने कहा कि केपी जायसवाल शोध संस्थान के एक सर्वे में कई ऐसे कई साक्ष्य मिले हैं जिससे पता चलता है कि पहली शताब्दी से ही एशिया के लोग भारत आने लगे थे और बिहार का बोधगया बौद्ध धर्म की राजधानी जैसा था।
Buddhism In Bihar | बौद्ध धर्म के विकास का केंद्र रहा है बिहार I
एलएन मिथिलाविववि के इतिहास के रिटायर्ड प्रोफेसर रविश्वर मिश्रा ने कहा कि बुद्ध ने सामाजिक परिस्थितियों को ध्यान में रखकर धर्म का सिद्धांत बनाया था। इसलिए यह धर्म लोकप्रिय हुआ। लेकिन जिन परिस्थितियों में बौद्ध धर्म की स्थापना हुई थी, वह परिस्थितियां अब नहीं रहीं। अब हर कोई धर्म से जुड़े रहने की बात करता है। लेकिन वह धर्म की संहिता का अनुसरण नहीं करता। अब एक नए धर्म की आवश्यकता है जो परिस्थितियों से तालमेल बिठाकर चल सके। कॉन्फ्रेंस में एमयू के प्रतिकुलपति डॉ. कृतेश्वर प्रसाद, कॉलेज ऑफ कॉमर्स के प्राचार्य डॉ. बबन सिंह, डॉ. राजीव रंजन, पीयूष कमल सिन्हा, अविनाश चंद्र मिश्रा सहित श्रीलंका, म्यांमार, वियतनाम थाईलैंड के करीब 250 विद्वान शामिल हुए।
बिहार में बौद्ध धर्म (Buddhism In Bihar)
- बौद्ध धर्म के संदर्भ में बिहार को सबसे पवित्र भूमि माना जाता है| यहीं पर सिद्धार्थ गौतम बुध को आत्मज्ञान के दिव्य ज्योति की प्राप्ति हुई थी| उन्होंने बिहार के अलग-अलग स्थानों पर अपने कई उपदेश दिया|
- गौतम बुध का जन्म 563 ईसा पूर्व में शाक्य नामक क्षत्रिय कुल में कपिलवस्तु के निकट नेपाल के तराई में अवस्थित लुम्बिनी में हुआ था|
- महात्मा बुध के पिता का नाम शुद्धोधन था और वे शाक्य गण के प्रधान थे। तथा उनकी मां का नाम महामाया था| यशोधरा उनकी पत्नी का नाम था| और उनके पुत्र का नाम राहुल था|
- गौतम बुध के जन्म के सातवें दिन माता की मृत्यु होने के कारण इनका पालन-पोषण की उनकी मौत प्रजापति गौतमी ने किया।
- महात्मा बुद्ध ने सत्य की खोज में 29 वर्ष की उम्र में अपना घर त्याग दिया था| इसे “महाभिनिष्क्रमण” के नाम से जाना जाता है|
- 35 वर्ष की आयु में उरूवेला (बोधगया) में वैशाख पूर्णिमा की रात्रि को निरंजना नदी के तट पर एक पीपल के वृक्ष के नीचे गौतम बुद्ध को ज्ञान प्राप्त हुआ।
- ‘ज्ञान’ प्राप्ति के बाद वह ‘बुद्ध’ कहलाए।
- ज्ञान प्राप्ति के बाद वे वाराणसी गए तथा अपना पहला उपदेश सारनाथ में दिया, जिसे धर्मचक्रप्रवर्तन करते हैं।
- उन्होंने वैशाली में अपना अंतिम उपदेश दिया और परिनिर्वाण की भी घोषणा की|
- कुशीनगर में 483 ईसा पूर्व में 80 वर्ष की अवस्था में उन्होंने शरीर त्याग दिया। बौद्ध ग्रंथों में इसे ‘महापरिनिर्वाण’ कहा जाता है।
- बुद्ध का ‘महापरिनिर्वाण’ मल्ल की राजधानी कुशीनगर में हुआ।
बुद्ध के जीवन से संबंधित बौद्ध धर्म के प्रतीक
घटना | प्रतीक |
जन्म | कंबल एवं सांड |
गृहत्याग | घोड़ा |
ज्ञान | पीपल(बोधिवृक्ष) |
निर्वाण | पद चिन्ह |
मृत्यु महापरिनिर्वाण | स्तूप |
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- प्रसिद्ध बौद्ध भिक्षु, सारिपुत्र नालंदा में पैदा हुए थे। बिहार में अलग-अलग स्थानों पर चार में से तीन बौद्ध परिषद आयोजित की गई|
- प्रथम बौद्ध परिषद का आयोजन राजगृह (राजगीर) से में अजातशत्रु के संरक्षण में भिक्षु महाकश्यप की अध्यक्षता में किया गया था।
- परिषद ने बौद्ध के शिक्षण (सुत्ता) और शिष्यों के नियमों (विनय) को संरक्षित करने के तरीके के बारे में विचार-विमर्श किया|
- दूसरी बौद्ध परिषद (383 ईसा पूर्व) राजा कालसोक के संरक्षण और सबकामी की अध्यक्षता में वैशाली में आयोजित की गई थी। इस
- परिषद का विचार अनुशासन संहिता के विनय पिटक पर विवाद का निपटारा करना था। विवाद 10 बिंदुओं पर था और इसे सुलझाया नहीं जा सका। यहां पहली बार बौद्ध धर्म के संप्रदाय दिखाई दिए|
- तीसरी बौद्ध परिषद (250 ई. पूर्व) का आयोजन पाटलिपुत्र में अशोक के संरक्षण में और मोगलीपुर्ता तिस्सा की अध्यक्षता में हुआ। बुद्ध की शिक्षा, जो दो पिटको में थी, अब तीन पिटक में वर्गीकृत की गई क्योंकि अभिधम्म पिटक इस परिषद में स्थापित किया गया था। इसने विनय पिटक के विवाद को निपटाने की भी कोशिश की|
- चौथी बौद्ध परिषद कश्मीर के कुंडलवन में आयोजित की गई, जो कुषाण राजा कनिष्क के अधीन था|
- चौथी संगीति के समय बौद्ध धर्म हीनयान और महायान नामक दो संप्रदायों में विभाजित हो गया। हीनयान वस्तुतः स्थविरवादी तथा महासांघिक थे।
बिहार में जैन धर्म
- जैन धर्म एक और महान विश्व धर्म है जो बिहार की पवित्र भूमि के लिए अपनी उत्पति का चिन्ह दर्शाता है। अवशेष 24 के तीर्थंकरों के माध्यम से अपने इतिहास का पता लगाते हैं, ऋषभनाथ पहले तीर्थंकर थे, और पार्श्वनाथ 23वें तीर्थंकर थे, जबकि महावीर 24 वें और अंतिम तीर्थंकर थे|
- महावीर का जन्म वैशाली (वर्तमान में बिहार का 1 जिला) के कुंडग्राम में 540 ईसा पूर्व(कहीं-कहीं 599 ईसा पूर्व ) में हुआ था। वे ज्ञातृक क्षत्रिय कुल के थे। उनके पिता का नाम सिद्धार्थ था जो ज्ञातृक क्षत्रियों के संघ के प्रधान थे। और मां का नाम त्रिशला थी। त्रिशला लिच्छवी की राजकुमारी थी। त्रिशला लिच्छवी नरेश चेतक या चेटक की बहन थी। वर्धमान महावीर ने 30 साल की उम्र में घर त्यागी और और 12 वर्ष की कठोर तपस्या के बाद जृम्भिक ग्राम के निकट ऋजुपालिका नदी के तट पर एक साल वृक्ष के नीचे इन्हें कैवल्य (ज्ञान) प्राप्त हुआ। और 42 साल की उम्र में “कैवल्य” हासिल कर लिया|
- महावीर स्वामी की पत्नी का नाम यशोदा था और उनकी पुत्री का नाम प्रियदर्शनी या प्रियदर्शना था।
- महावीर स्वामी का प्रथम अनुयायी जमाली था। जमाली महावीर स्वामी का दामाद भी था।
- कैवल्य के माध्यम से उन्होंने दुख और सुख पर विजय प्राप्त की और उन्हें जीना या महावीर के नाम से जाना जाने लगा। जैन धर्म के अनुसार सबसे महत्वपूर्ण मानव प्रयास मोक्ष या निर्वाण की प्राप्ति हैं|
- मोक्ष प्राप्त करने के लिए 3 जवाहर या रत्न है सही विश्वास, सही आचरण और सही ज्ञान।
- महावीर स्वामी ने कोसल, मिथिला, चंपा, मगध आदि महाजनपदों में 30 वर्षों तक जैन धर्म का प्रचार किया 72 वर्ष की आयु में महावीर स्वामी की मृत्यु हो गई।
- महावीर ने राजगृह (राजगीर) के पास पावापुरी में 468 ईसा पूर्व (कहीं-कहीं 527 ई. पूर्व) में निर्वाण प्राप्त किया।
- जैन धर्म में 2 परिषदों का आयोजन किया गया है। पहली परिषद पाटलिपुत्र में तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व के शुरुआत में स्थूलाभद्र द्वारा आयोजित की गई थी। यहां जैन धर्म दो संप्रदायों में बटा हुआ था:- श्वेतांबर और दिगंबर|
श्वेतांबर एवं दिगंबर में अंतर
श्वेतांबर (तेरातेरापंथ)
- मोक्ष प्राप्ति के लिए वस्त्र त्याग आवश्यक नहीं।
- स्त्रियां निर्वाण की अधिकारी।
- कैवल्या प्राप्ति के बाद भी लोगों को भोजन की आवश्यकता।
- नोट:- इस संप्रदाय के अनुयायी उदारवृत्ति वाले थे तथा धार्मिक नियमों में परिस्थिति के अनुसार परिवर्तन के पक्षधर थे।
दिगंबर (समैया)
- मोक्ष प्राप्ति के लिए वस्त्र त्यागना अनावश्यक।
- स्त्रियों का निर्वाण संभव नहीं।
- कैवल्या प्राप्ति के बाद लोगों को भोजन की आवश्यकता नहीं।
- नोट:- यह कट्टरपंथी जैनियों का संप्रदाय था। इस संप्रदाय के अनुयायी जैन धर्म के नियमों का पालन बड़ी कठोरता से करते थे।
=> दूसरी परिषद देवाधी क्षमसरमण के नेतृत्व में पांचवीं शताब्दी में वल्लभी में आयोजित की गई थी और इसके परिणामस्वरूप 12 अंगों और 12 उपांगों का अंतिम संकलन हुआ।
जैन धर्म के सिद्धांत (Theory Of Jainism)
जैन धर्म के पांच महाव्रत है:-
- अहिंसा (हिंसा नहीं करना)
- सत्य (झूठ नहीं बोलना)
- अस्तेय (चोरी नहीं करना)
- अपरिग्रह (संपत्ति अर्जित नहीं करना)
- ब्रह्मचार्य (इंद्रियों को वश में करना)
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